"लू लू क्या हुआ तुझे?" - टी लू ने पूछा तो लू लू चुप रहा। टी लू लू लू का
सबसे अच्छा दोस्त है। फिर पूछा - "लू लू तू चुप क्यों है? देख रहा हूँ तू कुछ
दिनों से बस उदास-उदास ही रहता है। न पहले की तरह हँसता है, न बोलता है। बता
न?"
"बस यूँ ही टी लू।" - एक छोटा-सा जवाब दिया लू लू ने और आसमान की ओर देखा। चुप
हो गया।
"कुछ तो जरूर है लू लू? मैं तेरा दोस्त हूँ। मुझे नहीं बताएगा तो किसे बताएगा।
जल्दी बता न! देख घंटी बजने वाली है!" - टी लू ने मिन्नत करते हुए कहा।
लू लू अब भी चुप है। उसके चेहरे पर पहाड़-सी उदासी है। उसकी आँखों में भरे-भरे
तालाब अटके हुए हैं। उसके पाँवों के नीचे मानों सूखी फसलों का रेगिस्तान बिछा
हुआ है।
इस बार टी लू ने थोड़े गुस्से से कहा - "देख लू लू, तू अब भी चुप रहा तो मैं
कट्टी कर दूँगा। फिर कभी नहीं बोलूँगा। तेरी-मेरी दोस्ती को खत्म कर दूँगा। तू
अलग, मैं अलग।
"नहीं!" - लू लू दबी आवाज में लगभग चीखा। उसकी आँखों में अटके तालाब छलक आए।
उसने टी लू के गले लगते हुए कहा - "नहीं टी लू, तू भले ही कुछ दिनों के लिए
कट्टी कर ले, पर मुझसे अलग होने की बात कभी मत करना।"
"अरे पगले, मैं अलग कहाँ हो रहा हूँ।" टी लू ने गले लगे लू लू की पीठ सहलाते
हुए कहा।
लू लू को जैसे ताजी हवा का झोंका महसूस हुआ। उसने अलग होते हुए कहा - "टी लू
हामारे माता-पिता इतना क्यों लड़ते हैं?"
लू लू का प्रश्न सुनकर टी लू की आँखों में ढेर से प्रश्न उग आए थे। उत्सुकताओं
के कितने ही बादल घिर आए थे। वह चुपचाप लू लू की ओर देखता रह गया था। फिर
सँभलते हुए बोला - "वह तो हम बच्चे भी लड़ते हैं लू लू। पढ़ा नहीं अखबार में, दो
देश भी लड़ते हैं।"
लू लू ने सुना। कुछ देर चुप रहा। वह सोच नहीं रहा था। बस कुछ कहने की हिम्मत
जुटा रहा था। बोला - "पर टी लू, हम बच्चे अलग होने के लिए तो नहीं लड़ते न? हम
तो लड़कर फिर एक हो जाते हैं। फिर साथ-साथ खेलते हैं। फिर साथ-साथ खाते हैं। ये
माता-पिता बच्चे क्यों नहीं होते टी लू!"
टी लू है तो खुद भी बच्चा ही न! लू लू की बातों का क्या जवाब दे। कुछ देर तो
सूझा ही नहीं। बस इतना कह सका - "लू लू पर कुछ माता-पिता तो बच्चे ही होते
हैं। जैसे मेरे माता-पिता। वे भी तो लड़ते हैं। कभी-कभी।"
लू लू अब थोड़ा शांत लग रहा था। जैसे कोई रास्ता मिल गया हो। किसी प्रश्न का
सही उत्तर याद हो गया हो जैसे। हो सकता है, अपने मन की बात बाँट लेने के कारण
भी शांत हो गया हो। बोला - "पर टी लू मेरे माता-पिता बच्चे नहीं हैं।"
"क्यूँ?" - टी लू के मुँह से अपने आप यह शब्द निकला।
"बताऊँगा"। घर लौटते समय्। अभी कक्षा में चलते हऐं। घंटी बजने वाली है।" - लू
लू ने उठते हुए कहा।
टी लू और लू लू कक्षा में आ गए। टी लू का मन तो लू लू की बात जानने की ओर ही
भाग रहा था। वह सोचने लगा कि जब हम कुछ जानने के लिए बेचैन होते हैं तो और
बातों की ओर मन क्यों नहीं लगता। लू लू लेकिन चुप था। शांत। कक्षा समाप्त हुई
तो दोनों बाहर आए। टी लू के सब्र का तो बाँध ही टूट गया। बोला - "लू लू बता
न?"
लू लू ने कहना शुरू किया - "देख टी लू, जो बताऊँगा वह किसी से कहना नहीं।
घरवालों से भी नहीं।
"नहीं बताऊँगा।" टी लू ने गले का टेटुआ पकड़ते हुए कसम ली।
"टी लू क्या बताऊँ! मेरी मम्मी और पापा खूब लड़ते हैं। जब देखो तब। वे सोचते
हैं कि मुझे कुछ पता नहीं चलता। वे बहुत बुरा-बुरा भी बोलते हैं। गुस्से में
सब भूल जाते हैं। मम्मी भूल जाती है कि पापा की मम्मी मेरी दादी है। उनकी बहन
मेरी बुआ है। और पापा भूल जाते हैं कि मम्मी के भाई मेरे मामू हैं। उनके पापा
मेरे नानू हैं।"
टी लू लू लू की ओर ऐसे देखता है जैसे जानना चाह रहा हो कि इन सब बातों का मतलब
क्या है।
लू लू की बात लेकिन खत्म कहाँ हुई है। वह कहता है - "गुस्से में लाल होकर
मम्मी पापा से कहती है - मुझे नौकरानी बना रखा है। तुम्हारी माँ, तुम्हारी
बहन, तुम्हारा भाई जब देखो तब आ जाते हैं। उनके लिए ढेर खाना बनाओ। खिलाओ।
सेवा करो। और तो और अपने दोस्तों को भी जब देखो तब बुला लाते हो। नौकरानी जो
मिल गई है।" पापा भी गुस्से में आकर जाने क्या-क्या बोलने लगते हैं। कहते हैं
- "और जब तुम्हारा भाई आता है, तुम्हारी बहनें आती हैं तब? तब तो बड़ी उछल-उछल
कर सब कुछ उन पर लुटाने लगती हो। और अगर तुम्हारी सहेलियाँ नहीं आतीं तो क्या
उन्हें मैं बुलाने जाऊँ?"
टी लू सुन जरूर रहा था पर लग रहा था कि वह जैसे पूरी तरह बात समझ नहीं रहा
तहा। वह लू लू की ओर देख रहा था। जानने वाली निगाह से।
लू लू ने बात आगे बढ़ाई - "टी लू कितनी ही बातों पर मैंने मम्मी-पापा को कितनी
ही बातों पर लड़ते-गुस्सा करते देखा है। कुछ बातें तो मुझे समझ भी नहीं आईं। बस
घबरा जाता हूँ मैं। डर भी लगता है। लेकिन उस दिन ममी-पापा इतना लड़े, इतना लड़े
कि मम्मी ने कहा "अब मैं तुम्हारे साथ नही रह सकती।" पापा ने भी कहा - "तो
मैं भी कौन सा मरा जा रहा हूँ।" मम्मी बोली - "अब अलग रहूँगी मैं। मैं भी
कमाती हूँ। तुम्हारी कमाई पर नहीं पलती।" "तो जाओ न, किसने रोका है।" - पापा
ने भी कहा।
"मम्मी मुझे लेकर अब अलग घर में रहती है। किराए के घर में। मुझे तो मम्मी-पापा
दोनों चाहिए न टी लू। वे अलग हो गए हैं टी लू। टी लू वे बच्चे क्यों नहीं
हैं?" - लू लू ने रुँआसा होकर कहा।
टी लू ने लू लू को गले लगाया। बस इतना कह सका - "मैं प्रे करता हूँ लू लू कि
वे बच्चे हो जाएँ।"